क्या कहूँ अपने बारे में...? ऐसा कुछ बताने लायक है ही नहीं बस -
इक-दर्द था सीने में,जिसे लफ्जों में पिरोती रही
दिल में दहकते अंगारे लिए, मैं जिंदगी की सीढि़याँ चढती रही
कुछ माजियों की कतरने थीं, कुछ रातों की बेकसी
जख्मो के टांके मैं रातों को सीती रही। ('इक-दर्द' से संकलित)